תגובות אחרונות

Himarsha Gokhale
There are literally other sites for that. This is not that kind of site.

the person who typed this
The problem with short quotes is that they are not an accurate representation of your …

xkouki
"qwerty" is, ironically, rather difficult to type in Dvorak...

Dr. Elisabeth Kubler-Ross
Jeg får feil ved "k" i ", ​​kjent tap" selv om jeg skriver rett!

Bebe Kuhlet
I don't think it matters if you are homeless or not. I think the reality …

עוד

ציטוטים

הוסף ציטוט חדש

ציטוטים אחרונים - הציטוטים הטובים ביותר - הציטוטים הגרועים ביותר -

बबबबबबब - बबबबबबब
खैरियत यह हुई कि उसके कोई सौतेला भाई न हुआ। नहीं शायद वह घर से निकल गया होता। समरकान्त अपनी संपत्ति को पुत्र से ज्यादा मूल्यवान समझते थे। पुत्र के लिए तो संपत्ति की कोई जरूरत न थी पर संपत्ति के लिए पुत्र की जरूरत थी। विमाता की तो इच्छा यही थी कि उसे वनवास देकर अपनी चहेती नैना के लिए रास्ता साफ कर दे पर समरकान्त इस विषय में निश्चल रहे। मजा यह था कि नैना स्वयं भाई से प्रेम करती थी, और अमरकान्त के हृदय में अगर घर वालों के लिए कहीं कोमल स्थान था, तो वह नैना के लिए था।.

प्रेमचंद - कर्मभूमि
मगर कभी-कभी बुराई से भलाई पैदा हो जाती है। पुत्र सामान्य रीति से पिता का अनुगामी होता है। महाजन का बेटा महाजन, पंडित का पंडित, वकील का वकील, किसान का किसान होता है मगर यहां इस द्वेष ने महाजन के पुत्र को महाजन का शत्रु बना दिया। जिस बात का पिता ने विरोध किया, वह पुत्र के लिए मान्य हो गई, और जिसको सराहा, वह त्याज्य। महाजनी के हथकंडे और षडयंत्र उसके सामने रोज ही रचे जाते थे। उसे इस व्यापार से घृणा होती थी।.

प्रेमचंद - कर्मभूमि
अमरकान्त के पिता लाला समरकान्त बड़े उद्योगी पुरुष थे। उनके पिता केवल एक झोंपडी छोड़कर मरे थे मगर समरकान्त ने अपने बाहुबल से लाखों की संपत्ति जमा कर ली थी। पहले उनकी एक छोटी-सी हल्दी की आढ़त थी। हल्दी से गुड़ और चावल की बारी आई। तीन बरस तक लगातार उनके व्यापार का क्षेत्र बढ़ता ही गया। अब आढ़तें बंद कर दी थीं। केवल लेन-देन करते थे। जिसे कोई महाजन रुपये न दे, उसे वह बेखटके दे देते और वसूल भी कर लेते उन्हें आश्चर्य होता था कि किसी के रुपये मारे कैसे जाते हैं- ऐसा मेहनती आदमी भी कम होगा।.

प्रेमचंद - कर्मभूमि
अमरकान्त की आंखें फिर भर आईं। लाख यत्न करने पर भी आंसू न रूक सके। सलीम समझ गया। उसका हाथ पकड़कर बोला-क्या फीस के लिए रो रहे हो- भले आदमी, मुझसे क्यों न कह दिया- तुम मुझे भी गैर समझते हो। कसम खुदा की, बड़े नालायक आदमी हो तुम। ऐसे आदमी को गोली मार देनी चाहिए दोस्तों से भी यह गैरियत चलो क्लास में, मैं फीस दिए देता हूं। जरा-सी बात के लिए घंटे-भर से रो रहे हो। वह तो कहो मैं आ गया, नहीं तो आज जनाब का नाम ही कट गया होता।.

प्रेमचंद - कर्मभूमि
आज वही वसूली की तारीख है। अधयापकों की मेजों पर रुपयों के ढेर लगे हैं। चारों तरफ खनाखन की आवाजें आ रही हैं। सराफे में भी रुपये की ऐसी झंकार कम सुनाई देती है। हरेक मास्टर तहसील का चपरासी बना बैठा हुआ है। जिस लड़के का नाम पुकारा जाता है, वह अधयापक के सामने आता है, फीस देता है और अपनी जगह पर आ बैठता है। मार्च का महीना है। इसी महीने में अप्रैल, मई और जून की फीस भी वसूल की जा रही है। इम्तहान की फीस भी ली जा रही है। दसवें दर्जे में तो एक-एक लड़के को चालीस रुपये देने पड़ रहे हैं।.

ततततत - पीछा
जानकी गाडी तेजी से दौडने लगी थी। थोडीही देर में जिस गाडी के पिछे के कांच पर खुन से शुन्य निकाली हूई तस्वीर लगी थी वह गाडी उसे दिखाई देने लगी। वह गाडी दिखते ही जानव के शरीर मे और जोश आ गया और उसके गाडी की गती उसने और बढाई। थोडीही देर में वह उस गाडी के नजदीक पहूंच गया। लेकिन यह क्या? उसकी गाडी नजदीक पहूचते ही सामने के गाडी ने अपनी रफ्तार और तेज कर ली और वह गाडी जान के गाडी से और दूर जाने लगी। जान ने भी अपने गाडी की रफ्तार और बढाई। दोनो गाडीकी मानो रेस लगी थी।.

यययययय - यययययय
वह कैसी घड़ी थी जब सब कुछ भुलाकर उसने कृष्णन की वांछा की थी और पूरी तरह से उस वांछा को समर्पित हो गई थी, पर अब वह सब घट चुका था, उसकी हस्ती का अटूट हिस्सा बन चुका था। क्या अब उसे किसी तरह से भुलाया या मिटाया जा सकता है?

मीरा कुमारी - लौटना
एकदम पहले जैसा, कभी मन होता विजय को बता दे, उदारदिल विजय शायद सहज रूप में स्वीकार ले पर फिर मीरा के भीतर की सजग नारी उसे सावधान कर देती है 'तू पुरुष स्वभाव को इतनी अच्छी तरह से जान-बूझकर यह ग़लती कैसे कर सकती है? और बताने से होगा क्या? कृष्णन से कभी फिर मिल पाने की संभावना भी ख़त्म' और उसकी तार्किक बुद्धि उसे कहती है 'जो कुछ भी हुआ बहुत सहज मानवीय था, नारी-पुरुष में एक बहुत सहज आकर्षण जो दोनों की शारीरिक निकटता में पराकाष्ठा पाता है, उसमें ग़लत क्या है ये नीतियाँ तो समाज की बनाई हैं।.

editorial - idian cricket
टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली ने सही कहा कि भारत को पांच-छह वर्षों से जिस खिलाड़ी की तलाश थी वह हार्दिक पंड्या के रूप में इंदौर में मिल गया। वह कपिल देव की तरह ऐसा विस्फोटक ऑल राउंडर है, जिसकी कमी खलती थी लेकिन टीम के कोच रवि शास्त्री के प्रोत्साहन और अपनी मेहनत से पंड्या ने वह स्थान प्राप्त कर लिया। पंड्या को चार नंबर पर भेजने का फैसला भी रवि शास्त्री का ही था और वह सही साबित हुआ।.

प्रभुजी - प्रभु-परमेश्वर से ऑनलाईन रहिये
जब तक आपके ह्रदय का तार अपने प्रभु-परमेश्वर से जुड़ा रहता है तब तक कोई भी, किसी भी तरह से दिक्कत नहीं आती । वायर डिसकनेक्ट हुआ कि अशांति, बेचैनी, विघ्न जिसकी कोई किमत ही नहीं है वो भी आपके उपर हावी हो जाती है । इसलिए हमेशा प्रभु-परमेश्वर से ऑनलाईन रहिये ।.

प्रभुजी - विवेक
आपके ह्रदय में विवेकरुपी चीप जो बाय डिफॉल्ट फिट है उसके अन्दर व्यवहार से लेकर परमार्थ तक क्या करना है, क्या नहीं करना है यह स्टोअर है । और हम जब-जब उसका जितनी बार अनादर करते हैं उतनी-उतनी बार कष्ट पाते हैं और ईश्वर-कृपा, समय और मनुष्य जन्म हमारे हाथ में से निकल जाते हैं । इसलिए विवेक का आदर हर हालत में हर किमत पर करना चाहिए ।.

नरेन्द्र मोदी - नरेन्द्र मोदी
आज हमारे समाज में एक नहीं अनेक प्रकार की समय की बात तहतै की जब हम नहीं चाहते थे कि लोग क्या कर रहे हैं क्या नही क्या नहीं क्योंकि लोगों के पास जो भी है वह बहुत ही सुन्दर है क्योंकि लोग यही चाहते हैं कि उनके पास बहुत सारी चीजे हो जाये और वे भी अच्छी तरह से रहने लगे और लोगों की सेवा करने लगे और यही बात तो है जो मुझे परेशान करती है क्योंकि लोगों के नाम का रोना हमें पड़ता है क्योंकि सीमा का नाम आते ही लोगों के होश उड़ जाते हैं क्योंकि उनके मामा का नाम बहुत ही पुराना हो गया है और वे चाहते हैं कि

नरेन्द्र मोदी - नरेन्द्र मोदी
देश ने पिछले 15 दिनों में दो बातें स्पष्ट देखी हैं। एक तरफ विकासवाद है तो दूसरी तरफ विरोधवाद है। विकासवाद और विरोधवाद के बीच ये जनता जनार्दन है, जो दूध का दूध और पानी का पानी करके क्या सत्य है, इसको भलीभांति नाप सकती है।.

d0892
बिस्तर पर पड़े दोस्त ने पूछा, कौन सा काम तुम मरने के बाद स्वर्ग में क्रिकेट खेलतें है या नहीं खेलते इसके बारे में मुझे जरुर बताओगे। दोनों ही क्रिकेट के बहुत दिवाने थे. क्यों नही जरुर बिस्तर पर पड़े दोस्त ने कहा और एक दो दिन में ही बीमार पड़ा दोस्त भगवान को प्यारा हो गया कुछ दिन बाद जो जिंदा बूढ़ा दोस्त था उसे नींद में अपने मरे हुए दोस्त की आवाज सुनाई दी। "तुम्हारे लिए मेरे पास दो खबरें है...एक बुरी और एक अच्छी ..."

d0892
इस किले में कत्‍लेआम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं। कई बार इस समस्‍या से रूबरू हुआ गया है। एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहां लगायी थी ताकि इस बात की सच्‍चाई को जाना जा सकें, लेकिन वो भी असफल रही कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्ठि की थी। इस किले में आज भी जब आप अकेलें होंगे तो तलवारों की टनकार और लोगों की चींख को महसूस कर सकतें है.

d0892 - कहानी2
दुनिया में ऐसी जगहों के बारें में लोग जानते है, लेकिन बहुत कम ही लोग होते हैं, जो इनसे रूबरू होने की हिम्मत रखतें है। जैसे हम दुनिया में अपने होने या ना होने की बात पर विश्‍वास करतें हैं वैसे ही हमारे दिमाग के एक कोने में इन रूहों की दुनिया के होने का भी आभास होता है। ये दीगर बात है कि कई लोग दुनिया के सामने इस मानने से इनकार करते हों, लेकिन अपने तर्कों से आप सिर्फ अपने दिल को तसल्‍ली दे सकते हैं, दुनिया की हकीकत को नहीं बदल सकते है।.

d0892 - सफलता की कुंजी
समय, सफलता की कुंजी है। समय का चक्र अपनी गति से चल रहा है या यूं कहें कि भाग रहा है। अक्सर इधर-उधर कहीं न कहीं, किसी न किसी से ये सुनने को मिलता है कि क्या करें समय ही नही मिलता। वास्तव में हम निरंतर गतिमान समय के साथ कदम से कदम मिला कर चल ही नही पाते और पिछङ जाते हैं। समय जैसी मूल्यवान संपदा का भंडार होते हुए भी हम हमेशा उसकी कमी का रोना रोते रहते हैं क्योंकि हम इस अमूल्य समय को बिना सोचे समझे खर्च कर देते हैं।

?????? ??????????
वीरता से आगे बढो। एक दिन या एक साल में सिध्दि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो। स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। आज्ञा-पालन करो। सत्य, मनुष्य -- जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो -- व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं।

?????? ??????????
हे सखे, तुम क्योँ रो रहे हो ? सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं। हे भगवन्, अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। जड की कोई शक्ति नहीं प्रबल शक्ति आत्मा की हैं। हे विद्वन! डरो मत्; तुम्हारा नाश नहीं हैं, संसार-सागर से पार उतरने का उपाय हैं। जिस पथ के अवलम्बन से यती लोग संसार-सागर के पार उतरे हैं, वही श्रेष्ठ पथ मै तुम्हे दिखाता हूँ!

?????? ??????????
जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है–अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत् को शिक्षा प्रदान करता है।